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  • सिर्फ रह गई 2008 की यादें..

    अपने 365 दिनों के आखिरी घंटों में पहुंच चुके 2008 में कई ऐसी हस्तियां हमसे हमेशा के लिए दूर चली गई, जिन्हें कभी नहीं भुलाया जा सकता। इतिहास के पन्नों पर इनके अमिट हस्ताक्षर दर्ज हैं और पीछे रह गई हैं सिर्फ यादें ़ ़ ़
    एवरेस्ट के प्रथम विजेता सर एडमंड हिलेरी का इस साल 12 जनवरी को 88 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। न्यूजीलैंड का यह पर्वतारोही 29 मई 1953 को 33 साल की उम्र में शेरपा पर्वतारोही तेनजिंग नोरगे के साथ माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाला पहला व्यक्ति बन गया था।
    27 जनवरी को इंडोनेशिया के पूर्व तानाशाह सुहार्तो का 86 साल की उम्र में निधन हो गया। 1967 से 1998 तक इंडोनेशिया के राष्ट्रपति रहे सुहार्तो को 20 वीं सदी के सर्वाधिक भ्रष्ट और क्रूर शासकों में से एक माना जाता था।
    वर्ष 1955 से ट्रांसडेंशल मेडिटेशन तकनीक की शुरूआत कर दुनिया के विभिन्न देशों में इसका प्रसार करने वाले आध्यात्मिक गुरू महर्षि महेश योगी का छह फरवरी को 91 वर्ष की उम्र में नीदरलैंड में निधन हो गया।
    टिहरी आंदोलन की जान समझे जाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और गांधीवादी बाबा आम्टे ने नौ फरवरी को महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में आनंदवन आश्रम में 94 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली। उन्होंने 1985 में कश्मीर से कन्याकुमारी तक और 1988 में असम तथा गुजरात में भारत जोड़ो आंदोलन चलाया था।
    एक मई को वयोवृद्ध गांधीवादी निर्मला देशपांडे का 79 वर्ष की उम्र में नई दिल्ली में देहांत हो गया। निर्मला गांधीवादी मूल्यों को लोकतांत्रिक समाज का एकमात्र रास्ता मानती थीं।
    शांतता कोर्ट चालू आहे घासीराम कोतवाल और सखाराम बाइंडर जैसे लोकप्रिय एवं बहुचर्चित नाटक लिखने वाले प्रख्यात मराठी नाटककार और लेखक विजय तेंदुलकर ने 19 मई को पुणे में इस दुनिया के रंगमंच को विदा कह दिया। घासीराम कोतवाल का 6000 से अधिक बार मंचन हो चुका है।
    इस साल 27 जून को पूर्व सेना प्रमुख और 1971 के भारत-पाक युद्ध के महानायक फील्ड मार्शल सैम मानेकशा का तमिलनाडु के एक सैन्य अस्पताल में निधन हो गया। इसी युद्ध में पाकिस्तान के 90000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था और बांग्लादेश का उदय हुआ था। पद्म विभूषण तथा मिलिट्री क्रास अवार्ड से सम्मानित मानेकशा को 1973 में फील्ड मार्शल का सम्मान दिया गया था।
    नई दिल्ली में एक अगस्त को वयोवृद्ध मा‌र्क्सवादी नेता हरकिशन सिंह सुरजीत ने लंबी बीमारी के बाद अंतिम सांस ली। 1990 के दशक में भाजपा विरोधी गठबंधन बनाने में तथा वर्तमान संप्रग सरकार को वाम दलों का समर्थन दिलाने में उनकी अहम भूमिका थी।
    सोवियत संघ के जबरिया मजदूर शिविरों की दास्तान गुलाग के रूप में दुनिया के सामने रखने के कारण 1970 में देश से निष्कासित किए गए रुसी लेखक और असंतुष्ट अलैक्सांद्र सोल्झेनित्सन का 89 साल की उम्र में तीन अगस्त को मास्को में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उन्हें 1970 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया था।
    30 अगस्त को भारतीय उद्योग जगत का एक मजबूत स्तंभ ढह गया, जब प्रख्यात उद्योगपति और राज्यसभा के पूर्व सदस्य के के बिड़ला ने संक्षिप्त बीमारी के बाद कोलकाता में अंतिम सांस ली। 90 वर्षीय बिड़ला जीवनपर्यंत समाजसेवा से जुड़े रहे।
    दुनिया भर में मशहूर जूता कंपनी बाटा के मालिक थामस बाटा का कनाडा में एक सितंबर को निधन हो गया। वे 93 वर्ष के थे। चेक गणराज्य में जन्मे बाटा ने टोरंटो के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली।
    हमराज, गुमराह, धूल का फूल, वक्त और धुंध जैसी फिल्मों में यादगार गीतों तथा लोकप्रिय टीवी धारावाहिक महाभारत के शीर्षक गीत को स्वर देने वाले प्रख्यात पा‌र्श्व गायक महेंद्र कपूर का 27 सितंबर को मुंबई में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।
    लीक से हट कर सामाजिक विषयों पर नया दौर, कानून, गुमराह, हमराज जैसी फिल्में बनाने वाले मशहूर फिल्म निर्माता बलदेव राज चोपड़ा का मुंबई में पांच नवंबर को निधन हो गया। छोटे पर्दे के लिए महाभारत सीरियल बनाने वाले 94 वर्षीय चोपड़ा को 1998 में दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
    वर्ष 1989 में राजीव गांधी की सरकार को सत्ता से बेदखल कर गैर कांग्रेसी गठबंधन सरकार बनाने वाले और आरक्षण लागू कर सोशल इंजीनियरिंग के जरिये देश का राजनीतिक परिदृश्य बदल देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का 27 नवंबर को नई दिल्ली में निधन हो गया। मांडा के राजा के तौर पर चर्चित 77 वर्षीय सिंह पिछले 17 साल से रक्त कैंसर से पीडि़त थे।
    भारतीय पेंटिंग परिदृश्य में रंगों के साहसिक इस्तेमाल से क्रांति लाने वाले प्रसिद्ध चित्रकार मंजीत बावा ने नई दिल्ली में 29 दिसंबर को अंतिम सांस ली। 67 वर्षीय बावा मस्तिष्काघात के बाद पिछले तीन वर्षों से कोमा में थे। वह पहले चित्रकार थे जिन्होंने पाश्चात्य कला में बहुलता रखने वाले भूरे और धूसर रंगों का वर्चस्व खत्म करके उसकी जगह लाल और बैंगनी जैसे भारतीय रंगों को चुना।
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