सौ तालों की एक चाबी होंगी आंखें
आंखों का आम इस्तेमाल देखने के लिए होता है। शायरों की राय में आंखों से कत्ल भी हो सकता है। लोग आंखों ही आंखों में संवाद भी कर लेते हैं, लेकिन अब वैज्ञानिक आंखों को सौ ताले की एक चाबी बनाने में जुटे हैं।
घर का बंद दरवाजा खोलना हो, बैंक खाते में पड़े पैसों की जानकारी करनी हो या कंप्यूटर लाग आन करना हो, अब इसके लिए किसी कोड या खुफिया चाबी की जरूरत नहीं होगी। यह काम चुटकी बजाते हमारी आंखें कर दिया करेंगी। यह किसी साइंस फिक्शन फिल्म की पटकथा नहीं, बल्कि क्विंसलैंड यूनिवर्सिटी आफ टेक्नोलॉजी की शोधार्थी सैमी फैंग का दावा है।
फिंग ने आंख की पुतलियों के काम करने की पद्धति पर आधारित तकनीक (आइरिस स्कैनिंग टेक्नोलाजी) की अंतिम बाधा को दूर कर लिया है। उन्होंने बताया कि हर व्यक्ति की आंख की पुतलियां किसी दूसरे व्यक्ति की पुतलियों से अलग होती हैं। बिल्कुल फिंगरप्रिंट्स की तरह। यहां तक कि व्यक्ति के बाएं आंख की पुतली दाएं आंख की पुतली से भिन्न होती है। व्यक्ति की पुतलियों का यह जुदा-जुदा स्वरूप जीवनभर के लिए होता है। फिंग के मुताबिक पुतलियों की इसी खूबी या अनोखेपन को व्यक्ति की पहचान बनाया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि दुनिया के कई हिस्सों में इस तकनीक का इस्तेमाल हो भी रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले 10-20 सालों में यह रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा होगा। हालांकि, पुतलियों के जरिये पहचान निर्धारित करने की पद्धति को पूरी तरह सुरक्षित नहीं कहा जा सकता। दरअसल प्रकाश की व्यवस्था में कोई परिवर्तन पुतलियों के आकार (सिकुड़ना या फैलना) पर भारी असर डालता है। कई बार तो इतना कि इसका स्वरूप ही बदल जाता है। यदि पुतली का आकार काफी ज्यादा बदल जाए तो इससे जुड़ी पहचान प्रणाली ध्वस्त हो जाएगी। इसी कमी को दूर करने के लिए फेंग प्रयासरत थीं।
फेंग कोई ऐसी तकनीक विकसित करना चाहती थीं जिसमें प्रकाश व्यवस्था में बदलाव से पुतलियों की कार्यप्रणाली में होने वाले बदलाव को मापा जा सके। उन्होंने बताया कि प्रकाश को घटा या बढ़ाकर पुतली के आकार में .8 से 8 मिमी तक बदलाव लाया जा सकता है। फेंग ने अपनी रिसर्च में एक हाई स्पीड कैमरे का इस्तेमाल किया जो प्रति सेकेंड 12 सौ तस्वीरें खींच सकता है। इसके माध्यम से उन्होंने प्रकाश के घटने-बढ़ने का पुतलियों पर पड़ने वाले असर को मापा। उन्होंने पाया कि पुतलियों की वास्तविक इमेज और बदलाव के बाद प्राप्त इमेज की तुलना करके पुतलियों द्वारा पहचान स्थापित करने की पद्धति को काफी हद तक सुधारा जा सकता है।
घर का बंद दरवाजा खोलना हो, बैंक खाते में पड़े पैसों की जानकारी करनी हो या कंप्यूटर लाग आन करना हो, अब इसके लिए किसी कोड या खुफिया चाबी की जरूरत नहीं होगी। यह काम चुटकी बजाते हमारी आंखें कर दिया करेंगी। यह किसी साइंस फिक्शन फिल्म की पटकथा नहीं, बल्कि क्विंसलैंड यूनिवर्सिटी आफ टेक्नोलॉजी की शोधार्थी सैमी फैंग का दावा है।
फिंग ने आंख की पुतलियों के काम करने की पद्धति पर आधारित तकनीक (आइरिस स्कैनिंग टेक्नोलाजी) की अंतिम बाधा को दूर कर लिया है। उन्होंने बताया कि हर व्यक्ति की आंख की पुतलियां किसी दूसरे व्यक्ति की पुतलियों से अलग होती हैं। बिल्कुल फिंगरप्रिंट्स की तरह। यहां तक कि व्यक्ति के बाएं आंख की पुतली दाएं आंख की पुतली से भिन्न होती है। व्यक्ति की पुतलियों का यह जुदा-जुदा स्वरूप जीवनभर के लिए होता है। फिंग के मुताबिक पुतलियों की इसी खूबी या अनोखेपन को व्यक्ति की पहचान बनाया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि दुनिया के कई हिस्सों में इस तकनीक का इस्तेमाल हो भी रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले 10-20 सालों में यह रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा होगा। हालांकि, पुतलियों के जरिये पहचान निर्धारित करने की पद्धति को पूरी तरह सुरक्षित नहीं कहा जा सकता। दरअसल प्रकाश की व्यवस्था में कोई परिवर्तन पुतलियों के आकार (सिकुड़ना या फैलना) पर भारी असर डालता है। कई बार तो इतना कि इसका स्वरूप ही बदल जाता है। यदि पुतली का आकार काफी ज्यादा बदल जाए तो इससे जुड़ी पहचान प्रणाली ध्वस्त हो जाएगी। इसी कमी को दूर करने के लिए फेंग प्रयासरत थीं।
फेंग कोई ऐसी तकनीक विकसित करना चाहती थीं जिसमें प्रकाश व्यवस्था में बदलाव से पुतलियों की कार्यप्रणाली में होने वाले बदलाव को मापा जा सके। उन्होंने बताया कि प्रकाश को घटा या बढ़ाकर पुतली के आकार में .8 से 8 मिमी तक बदलाव लाया जा सकता है। फेंग ने अपनी रिसर्च में एक हाई स्पीड कैमरे का इस्तेमाल किया जो प्रति सेकेंड 12 सौ तस्वीरें खींच सकता है। इसके माध्यम से उन्होंने प्रकाश के घटने-बढ़ने का पुतलियों पर पड़ने वाले असर को मापा। उन्होंने पाया कि पुतलियों की वास्तविक इमेज और बदलाव के बाद प्राप्त इमेज की तुलना करके पुतलियों द्वारा पहचान स्थापित करने की पद्धति को काफी हद तक सुधारा जा सकता है।

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